Friday, 28 July 2017

Who is Koli? कोली कौन है??

कोली कौन है यह लेख आया ।

कोली एक समुदाय है जो मूल रूप से भारत के गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेशऔर उत्तर प्रदेश राज्यों का निवासी रहा है। दक्षिण भारत में कोली जाती मुख्य उपजाति मुथूराजा,मुदीराजु,मुथरैयार एंव आर्या/आर्यान हैं। वर्तमान में, कुछ राज्यों में इन्हें जनजाति और कुछ राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग में रखा गया है।

कोली शब्द कोलिय कुल से आया क्योंकि अगर प्राचीन इतिहास उठा के देखते है तब कोलिय कुल का विस्तृत तरीके से लिखा हुआ है गौतम बुद्ध कोलिय कुल में पैदा हुए थे।

भगवान मान्धाता कोलिय थे वही से कोलिय वंश चला , अतः कोलिय कुल भगवान् मान्धाता से सुरु हुआ जिनके 25वी पीढ़ी में दशरथ हुए अर्थात भगवान् राम भी इष्वांकु वंश के कोलिय कुल में पैदा हुए ।

शिवाजी की सेना में अधिकतर कोलिय थे । तानाजी रॉव कोलिय वंश से ही थे ।

मुम्बई का नाम कोलिय कुल देवी मुम्बा देवी के नाम पर रखा गया ।

कोली राजपूत थे जिनकी कई रियासतोंके बारे में इतिहास में लिखा हुआ है । पर समय के साथ ये सब राज पाठ छोड़ दिए और पिछड़े वर्ग में शामिल हो गए ।

लेकिन अभी भी काफी राजपुत जो कोलिय वंश से है वो अभी भी है ।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश इसका जीता जागता उधारण है यही कोली राजपूत कहलाते है ।

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश के कोरी जाति से आने की बजह से अनुसूचित जाति में आते हैं ।

श्री राम का जन्म मन्धाता के बाद 25वीं पीढ़ी में हुआ था। एक अन्य राजा ईक्ष्वाकु सूर्यवंश के कोली राजाओं में हुए हैं अतः मन्धाता और श्रीराम ईक्ष्वाकु के सूर्यवंश से हैं।

बाद में यह वंश नौ उप समूहों में बँट गया, और सभी अपना मूल क्षत्रिय जाति में बताते थे। इनके नाम हैं: मल्ला, जनक, विदेही, कोलिए, मोर्या, लिच्छवी, जनत्री, वाज्जी और शाक्य. पुरातात्विक जानकारी को यदि साथ मिला कर देखें तो पता चलता है कि मन्धाता ईक्ष्वाकु के सूर्यवंश से थे और उसके उत्तराधिकारियों को ‘सूर्यवंशी कोली राजा’ के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि वे बहादुर, लब्ध प्रतिष्ठ और न्यायप्रिय शासक थे।

बौध साहित्य में असंख्य संदर्भ हैं जिससे इसकी प्रामाणिकता में कोई संदेह नहीं रह जाता। मन्धाता के उत्तराधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हमारे प्राचीन वेद, महाकाव्य और अन्य अवशेष उनकी युद्धकला और राज्य प्रशासन में उनके महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख करते हैं।

हमारी प्राचीन संस्कृत पुस्तकों में उन्हें कुल्या, कुलिए, कोली सर्प, कोलिक, कौल आदि कहा गया है।।

संदर्भ: विकिपीडिया इनसाइक्लोपीडिया।

Friday, 21 July 2017

नई_नाथ_महादेव_की_कहानी | Nainath Mahadev Ki Kahani

💐💐🌳नई_नाथ_महादेव_की_कहानी🌳💐💐
⛳⛳नईनाथ धाम पर लक्खी मेला आज से शुरू🇮🇳💐💐
#जयपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर आगरा रोड से बांसखोह पर स्थित एक प्राचीन शिवमंदिर के नामकरण की अनोखी कहानी है।
इस मंदिर का नाम है नईनाथ महादेव मंदिर।

मंदिर करीब 350 साल पुराना बताया जाता है। मंदिर में स्थित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि वह स्वयंभू प्रकट है। इस मंदिर के नामकरण के बारे में क्षेत्र में एक कहानी प्रचलित है।

मंदिर से जुड़े ​हरिनारायण ने बताया कि सैकड़ों साल पहले बांसखोह या बांसखो में एक राजा हुए थे। उनके तीन रानियां थी।
विवाह पश्चात इन तीनों के कोई संतान नहीं हुई। तब यहां पास ही जंगल में स्थित शिवमंदिर में रह रहे बालवनाथ बाबा ने शिव मंदिर में पूजा करने की सलाह रानियों को दी। तीनों रानियों में से सबसे छोटी ने इस सलाह पर अमल किया। छोटी रानी "नई_रानी" ने हर माह अमावस्या पूर्व चतुदर्शी को वीरान जंगल में स्थित इस प्राचीन शिव_मंदिर में पूजा करने का व्रत लिया।
वह शाही सवारी के साथ मंदिर जाती और पूजा अर्चना कर लौटती।
इस शाही सवारी को देखने के लिए लोग जुटते थे।
रानी की मुराद पूरी हुई और उसके जल्द ही संतान प्राप्ति हुई। चूंकि रानी नई नवेली थी।
यानि उसका विवाह कुछ समय पहले ही हुआ था। इसलिए क्षेत्र में कहा जाने लगा कि "नई" पर "नाथ" यानि बालवनाथ की कृपा ​हुई है।

बाद में यह स्थान #नई_रानी तथा अब #नई_का_नाथ अथवा नईनाथ के नाम से फेमस हो गया। मंजनसेवर

शिव मंदिर के पास बालवनाथ बाबा का धूणा है। वहां उनके चरणों की पूजा होती है लोग मन्नत मांगते है। यहां हर महीने अमावस्या से पूर्व चतुदर्शी को मेला आयोजित होता है।

स्वयंभू प्रकट है शिवलिंग

नईनाथ में भगवान शिव का मंदिर बना हुआ है। इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि सैकड़ों राज पहले इस क्षेत्र का नाम कोहिलापुरा था और वहां एक राजा हुए थे। राजा शिवभक्त था। वह नहा धोकर शिवजी की पूजा अर्चना के बिना अन्न ग्रहण नहीं करता था। एक बार दुश्मनों ने राजा को बंदी बना लिया और एक बावड़ी के पास कोठरी में कैद कर दिया। इस दौरान शिवजी की पूजा नहीं करने के कारण उसने सात दिन तक कुछ नहीं खाया।
सातवें दिन बावड़ी का जल छलका और राजा पर गिरा। भूख—प्यास से अर्धबेहोश राजा को होश आया और उसने अपना सिर झटकाया तो देखा कि सामने शिवलिंग था।
उसी समय उसका सेना वहां आ जाती है और उसे मुक्त करा लेती है।कई साल बाद यहां बालवनाथ नामक बाबा कुटिया बना कर रहने लगे।
वह सिद्ध पुरूष थे।
नई नाथ के मंदिर में साल में दो बार शिवरात्रि को और श्रावण में मेले आयोजित होते है।
इन दोनों ही मेलों में लाखों की संख्या में भक्त आते है।

श्रावण मास में यहां सहत्रधटों तथा सवामणियो की जमघट लगा रहता है।
पैदल यात्राओं की धूम धाम लगी रहती है।

श्रावण मास में यहां कावड़ यात्राओं की धूम रहती है।🎄🌲🌲🌳🌳🌳🌴